लोकसभा चुनाव में करारी पराजय के बाद राहुल गांधी अब यह कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में पी. चिदंबरम, अशोक गहलोत और कमलनाथ अपने पुत्रों को पार्टी टिकट देने की मांग कर रहे थे. कोई उनसे भी जरा सवाल करे कि अगर ये सब अपने पुत्रों के लिए टिकट की मांग कर रहे थे तो उन्हें फिर टिकट क्यों दे दी गई और मेरिट की अनदेखी क्यों हुई और किसने की? जिम्मेदार तो आप ही हैं न?
जरा याद कीजिए. पिछले राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस विजयी रही थी. राजस्थान के उस विजय में सचिन पाय़लट का अहम रोल रहा था. लेकिन राज्य का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बनाया दिया गया. राहुल जी ने ही बनाया न? हालांकि उस पद के सही हकदार और कांग्रेस कार्यकर्ताओं, खासकर युवा वर्ग के नेता सचिन पायलट ही थे.
इसी प्रकार, मध्यप्रदेश में तेजी से उभरते युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा कर राजीव गांधी के मित्र रहे और 1984 के सिख दंगों के दागदार कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. यह भी तो सोनिया-राहुल ने ही तो किया न?
दरअसल राहुल गांधी को लगता है कि युवा नेता यदि आगे बढ़ेंगे तो उनके सामने चुनौती खड़ी हो जाएगी. वस्तुस्थिति तो यह है कि अब कांग्रेस में जन धड़कन पैदा करने वाला कोई नेता बचा ही नहीं है. वहां आज के दिन सबके सब हवा-हवाई नेता हैं. ये खबरिया चैनलों पर अपने विचार व्यक्त करके ही अपनी सियासत चमकाने की कोशिश करते रहते हैं
अब कांग्रेस को किसानों, मजदूरों, औरतों वगैरह के सवालों पर सड़कों पर आकर आंदोलन किए हुए भी एक लम्बा अरसा हो गया है. इनके शरीर पर इतनी चर्बी चढ़ गई है कि उसे अब साफ करना जरूरी हो चुका है. लेकिन सवाल वही उठता है कि कांग्रेस में अब फिर से कौन जान डालेगा? वंशवाद से मुक्ति पाए बिना तो यह संभव दिखता ही नहीं है. वंशवाद से मुक्ति दिलायेगा कौन?
पिछले दिनों सारे देश ने कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के चित्र अखबारों में छपे देखे. उसमें वही वंशवाद के चिर-परिचित समर्पित सेवक पुराने चेहरे बैठे हुए थे. कुछेक को छोड़कर सब के सब अब भूतपूर्व सांसद या मंत्री भी हैं. कुछ वर्तमान सांसद भी हैं. पर इन सबका रोम-रोम गांधी परिवार से कृतज्ञ है. गांधी परिवार इन्हें हमेशा से ही कोई पद देकर रेवड़ियां बांटता रहता है. इनके जमीर अब मर गए हैं. ये गांधी परिवार के आगे सदैव दंडवत की अवस्था में ही बने रहते हैं. जाहिर है कि गांधी परिवार को इसी तरह के कमजोर और चापलूस नेता ही सदैव पसंद आते हैं.
सच तो यह है कि कांग्रेस ने उसी दिन अपनी कब्र खोद ली थी जिस दिन हर प्रकार से योग्य और अनुभवी नेता प्रणब कुमार मुखर्जी को नजरअंदाज कर मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया था. डॉ. मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री जरूर थे, पर उनमें वे गुण नहीं थे जिसकी एक प्रधानमंत्री पद पर आसीन नेता को जरूरत होती है. वे तो सारे फैसले सोनिया गांधी के सरकारी आवास में जाकर ही लेते थे. बिना 10 जनपथ की आज्ञा से कोई फाइल ही नहीं साइन करते थे. कुछ बोलने के पहले तक पूछते ही थे.
आज कांग्रेस का बुरा हाल है. 19 राज्यों में पार्टी ने शून्य हासिल किया. और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि कांग्रेस को सिर्फ गांधी-नेहरु परिवार पसंद है. गांधी या उन्हें ऐसे नेता को ही पसंद करना होता है जो गांधी परिवार को पसंद है. इसी कारण तो कांग्रेस अब अपनी अंतिम सांसें गिन रही है.