यूंही नहीं मायावती को हुई अखिलेश से अदावत, पीछे हैं ये 5 बड़े कारण
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन टूटने की कगार पर खड़ा है. इस बात की पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन अखिलेश यादव और मायावती के बयानों से साफ है कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. मायावती ने 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अकेले दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर गठबंधन की स्थिति साफ कर दी है. तो अखिलेश यादव ने कहा है कि उपचुनाव में अगर अकेले लड़ने का फैसला हुआ है, तो फिर हम भी अकेले ही चुनाव लड़ने की तैयारी करेंगे.
मतलब साफ है, लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में जिस उत्साह के साथ बुआ और भतीजे साथ आए थे, अब चुनाव में मुंह की खाने के बाद दोनों की राहें अलग होती दिख रही हैं. लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है, मायावती ने अखिलेश से अलग होने का फैसला क्यों लिया. जानकारों की मानें तो इस सवाल का एक जवाब नहीं बल्कि पांच बड़े कारण हैं.
कारण नंबर 1
गठबंधन के दौरान यह कहा गया था कि लोकसभा चुनाव में सपा समर्थन करेगी और विधानसभा चुनाव में बसपा मदद करेगी ताकि अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बन सकें. लेकिन लोकसभा चुनाव में उम्मीद के अनुसार वोट नहीं मिले जिसके कारण इस गठबंधन का कोई मतलब नहीं रह गया.
कारण नंबर 2
मायावती यह सोच रही होंगी कि लोकसभा में हमारे सांसद पहुंच गए हैं और क्षेत्र में कुछ मजबूती मिली है तो विधानसभा की दावेदारी क्यों छोड़ी जाए. गठबंधन इस उम्मीद के साथ किया गया था कि सपा मायावती की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी का समर्थन करेगी. लेकिन बीजेपी के प्रचंड बहुमत के आगे ये सब ध्वस्त हो गए.
कारण नंबर 3
मायावती का आरोप है कि लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह परिवार ने ही नुकसान पहुंचाया. उनका वोट ही ट्रांसफर नहीं हो पाया. शिवपाल सिंह यादव ने अपने कैंडिडेट खड़े करके काफी वोट काटे और नुकसान पहुंचाया इसलिए अब साथ चुनाव लड़ने का कोई मतलब नहीं है. मायावती का कहना है कि यादव परिवार के कारण ही यादवों का वोट उन्हें नहीं मिला.
कारण नंबर 4
मायावती का कहना है कि अजित सिंह जाट वोट को ट्रांसफर कराने में नाकाम रहे ऐसे में साथ चलने का कोई मतलब नहीं रह गया है. लोकसभा चुनाव में आरएलडी का एक भी उम्मीदवार जीत नहीं दर्ज करा पाया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसका कोई फायदा नहीं हुआ.
कारण नंबर 5
मायावती ने अपने आवास पर आयोजित समीक्षा बैठक में शामिल विधायकों, सांसदों और कोऑर्डिनेटर्स से कहा कि गठबंधन के साथ नहीं अकेले उपचुनाव लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि लोकसभा में उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिलने का मुख्य कारण यादव और जाट वोटों का ट्रांसफर नहीं होना है.
जानकारों की मानें, तो उपचुनाव लड़ने का फैसला चौंकाने वाला है, क्योंकि बसपा के इतिहास को देखें तो पार्टी उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारती है. वर्ष 2018 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे और सपा को समर्थन दिया था. इसी आधार पर लोकसभा चुनाव में भी गठबंधन बना, लेकिन परिणाम मनमाफिक नहीं आए. अब अगर मायावती अकेले उपचुनाव में उतरने का फैसला करती हैं तो गठबंधन के भविष्य पर सवाल उठना लाजमी है.