डीजे की तेज आवाज बन रही लोगों को दिल का दौरा पड़ने का कारण, पढ़ें ये चौका देने वाली रिपोर्ट

नई दिल्ली  । शादी-ब्याह के दौरान डांस करते हुए सेहतमंद दिख रहे लोगों की भी हार्ट अटैक से जान जा रही है। इसके बाद माना जा रहा है कि डीजे की तेज आवाज से इन सभी लोगों को दिल का दौरा पड़ा। वैसे संगीत का दिल से सीधा कनेक्शन है। अच्छा संगीत जहां दिल के मरीजों के लिए जादू का काम करता है, वहीं कानफाड़ू म्यूजिक से दिल की धड़कनें बढ़ या रुक भी सकती हैं। अब एक स्टडी छपी, जिसमें बताया गया कि म्यूजिक या किसी भी किस्म की तेज आवाज कैसे दिल को कमजोर बनाती है। शोधकर्ताओं ने 5 सौ वयस्कों, जो पूरी तरह स्वस्थ थे, के दिल की लगभग पांच साल तक स्टडी की। ये लोग व्यस्त सड़कों के आसपास रहने या काम करने वाले लोग थे, जहां दिनरात गाड़ियों की आवाज गूंजती। पांच सालों के दौरान अच्छे-खासे स्वस्थ दिल वाले लोग भी कार्डियोवस्कुलर बीमारियों से जूझते दिखे। शोध के अनुसार चौबीस घंटों में हर 5 डेसिबल की बढ़त से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा 34 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। यहां तक कि इससे ब्रेन के एमिग्डेला पर भी असर होता है। ये वहां हिस्सा है, जो भावनाओं और फैसला लेने की क्षमता को लीड करता है। क्रॉनिक नॉइस एक्सपोजर से ये हिस्सा सिकुड़ने लगता है, जिससे आक्रामकता और मूड स्विंग्स जैसी दिक्कतें आने लगती हैं। इस तरह की एक स्टडी एक अन्य सेंटर में भी हुई।

35 से 74 साल के 15 हजार लोगों को स्टडी का हिस्सा बनाया गया। इसमें पाया गया कि चाहे संगीत हो, या शोर, एक लिमिट के बाद उसकी आवाज का बढ़ना दिल को काबू से बाहर करने लगता है। हार्ट रेट इतनी ज्यादा हो जाती है, जैसे लंबी कसरत या दौड़ने के बाद होती है। दिल की धड़कनों के अनियमित होने को आर्टियल फाइब्रिलेशन कहा जाता है। इससे दिल का दौरा पड़ने, ब्रेन स्ट्रोक और ब्लड क्लॉट होने जैसे खतरे रहते हैं। वैज्ञानिकों ने माना कि कोई भी काम जो ब्लड प्रेशर बढ़ाए, वहां फाइब्रिलेशन को ट्रिगर कर सकती है।

तेज आवाज से भी यही होता है। इसमें हार्ट के ऊपरी दो चैंबरों में खून सही तरीके से नहीं पहुंच पाता, जिससे लोअर चैंबर्स का ब्लड फ्लो भी गड़बड़ा जाता है। ये हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ा देता है। इसके पहले तेज आवाज पर ज्यादातर स्टडीज इसी तरह की होती रहीं कि इससे कानों पर क्या असर होता है। ज्यादातर अध्ययनों में माना गया कि हमारे लिए 60 डेसिबल तक की आवाज सामान्य है, इससे ज्यादा आवाज से कान के परदों पर असर हो सकता है। हम जो भी सुनते हैं, साइंस में उसे डेसिबल पर मापा जाता है। पत्तों के गिरने या सांसों की आवाज को 10 से 30 डेसिबल के बीच रखा जाता है। ये वो आवाजें हैं, जो पूरे समय हमारे साथ होती हैं, लेकिन परेशान नहीं करतीं।

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