दिवाली हिन्दू धर्म का मुख्य त्यौहार है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम अपना वनवास खत्म कर अयोध्या लौटे थे और उनके स्वागत में इस त्यौहार को मनाया जाता है। वहीं इस दिन देवी लक्ष्मी और कुबेर की पूजा भी की जाती है।
जहां एक तरफ हिन्दू धर्म के लोग इस त्यौहार को रंगों और रोशनी के साथ मनाते हैं वहीं अन्य धर्मों में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है। हालांकि भारत में रहने वाले जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोग भी इसे दिवाली के त्यौहार के रूप में ही मनाते हैं लेकिन इसके अलावा इन धर्मों में कुछ और भी है जो दिवाली के इन दिनों में मनाया जाता है।
जैन धर्म में दिवाली का त्यौहार एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन उनके भगवान महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ था। इसके चलते जैन धर्म में यह बेहद महत्वपूर्ण त्यौहार होता है। जैन लोग इसे महावीर निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे और 15 अक्टूबर 527 बीसी को पावापुरी बिहार में उन्होंने निर्वाण लिया था। उन्होंने अमावस्या की रात निर्वाण प्राप्त किया था।
सिख धर्म
जैन धर्म की ही तरह सिख धर्म के लिए भी दिवाली का अपना महत्व है। यह वही दिन है जब अमृतसर में सिख धर्म के स्वर्ण मंदिर को 1577 में शिलान्यास किया गया था। इसके अलावा दिवाली पर ही सिख धर्म के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी 1619 मुगल बादशाह जहांगीर की कैद से खुद को और अन्य हिन्दु गुरुओं को आजाद कर लाए थे। ग्वालियर के किले से बाहर आने के बाद गुरु और अन्य लोग सीधे अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर गए थे। तब से लेकर अब तक सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन को मनाने के लिए पूरे स्वर्ण मंदिर को सजाया जाता है और सिख धर्म के लोग यहां विशेष पूजा करने के लिए आते हैं।
बौद्ध धर्म
बुद्ध धर्म में वैसे तो दिवाली हिदुओं की तरह मनाई जाती है लेकिन नेपाल में बुद्ध धर्म के अनुयायी इसे कुछ अलग कारणों से भी मनाते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन सम्राट अशोक ने सबकुछ छोड़कर शांति और अहिंसा का पथ चुना था और बुद्ध धर्म ग्रहण किया था। तब से लेकर अब तक इस दिन को अशोक विजयादशमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सभी अनुयायी मंत्रों का जाप करते हैं और भगवान बुद्ध को याद करते हैं।